Sadhana Shahi

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सदाचरण और सत्कर्म (कहानी) प्रतियोगिता हेतु23-Apr-2024

सदाचरण और सत्कर्म

आज के करीब सात दशक पहले सोनपुर गांँव में एक संत अपने शिष् पधारे। गांँव के लोगों ने उनका बड़ा ही आवभगत किया। अगले दिन जब संत अपने शिष्य के साथ गांँव में भ्रमण करने हेतु निकले तब उन्हें पता चला कि गांँव के प्रधान ने ताड़ के पेड़ के ऊपर एक बैग में सोने- चांँदी भर का टांँग दिया है और उसने आस-पास के गांँव में यह घोषणा कर दिया है कि जो भी व्यक्ति बिना सीढ़ी, रस्सी या किसी भी सहायता के बिना इस बैग को ताड़ के वृक्ष नीचे उतर लेगा। यह सोने- चांँदी से भरा बैग उसका हो जाएगा।

संत के साथ आया हुआ शिष्य भी इस बात को सुना दोनों गुरु चेले शाम को गांँव का भ्रमण करके अपनी कुटिया में आ गए। गुरु तो सो गए किंतु शिष्य को नींद नहीं आ रही थी, उसके दिमाग में वह सोने चांँदी से भरा हुआ बैग बार-बार घूम रहा था। उसे बार-बार लग रहा था यदि यह बैग मुझे मिल जाए तो मुझे यह गुरु जी के साथ यहांँ-वहांँ भ्रमण न करना पड़े। अतः वह चुपचाप से उठा और उस व्यक्ति के पास गया जिसने वृक्ष पर उस बैग को रखा हुआ था। उसने कहा चलिए मैं आपकी शर्त स्वीकार करता हूंँ और बिना किसी मदद के उस बैग को उतार लूंँगा। ग्राम प्रधान ने आस-पास के लोगों को यह ख़बर दे दिया की गुरु जी के साथ आया हुआ उनका चेला बैग को उतारने जा रहा है। जिसको भी इस चमत्कार को देखना है वह यथाशीघ्र ताड़ के बगीचे में उपस्थित हो जाए।भीड़ लग गई, शिष्य ने कुछ मंत्र उच्चारण किया हाथ ऊपर किया और बैग उनके हाथ में था।

पूरे गांँव के लोग उनके चमत्कार को देखकर हतप्रभ हो उसकी प्रशंसा करने लगे। ये तो बड़े दिव्य पुरुष हैं। बहुत पहुंँचे हुए आदमी हैं। 15 दिन से बैग टंँगा हुआ था कोई कुछ नहीं कर पा रहा था इसने एक मिनट में बैग उतार लिया। इसी तरह के चर्चे गांँव के आस-पास होने लगे। धीरे-धीरे यह चर्चा गुरुजी तक भी पहुंँची। गुरु जी ने अपने शिष्य से पूछा, तुमने क्या किया है, कि पूरे गांँव में तुम्हारे ही चर्चे हो रहे हैं ।

तब शिष्य ने सारी बात बताया। तब गुरु जी अपने शिष्य को लेकर उस व्यक्ति के पास गए जिसने बैग को रखा हुआ था और उन्होंने कहा देखिए हम साधु संत हैं हमें सोने- चांदी रूपए पैसे से कोई सरोकार नहीं है। हम मोह माया से मुक्त हो चुके हैं। अतः हमें इस बैग की आवश्यकता नहीं है आप इस बैग को किसी ज़रूरतमंद को दे दीजिए या फिर इस बैग के पैसों से से कोई धर्मशाला, विद्यालय, अस्पताल इत्यादि बनवा दीजिए।

गुरुजी के इस तरह की बात को सुनकर शिष्य ने बात को काटते हुए कहा। नहीं, मैंने इस बैग को अपने पुरुषार्थ से उतारा है और मैं इस बैग को किसी को नहीं दे सकता। क्योंकि मैंने शर्त जीतकर बैग हासिल किया है। यूंँ ही खैरात में नहीं। तब गुरु जी ने अपने शिष्य को समझाते हुए अरे मूर्ख! हम साधु- संत अपने अच्छे कर्मों, विचारों और सकारात्मक ऊर्जा को एकत्र कर अपने अंदर जिस शक्ति या गुण का संचार करते हैं हमें उसे इस तरह के चमत्कारों, में लगाकर समाप्त नहीं करना चाहिए। हमेंअपनी ऊर्जा को मोह, वशीकरण, जादू- टोना, झाड़- फूंँक आदि बेमतलब के चमत्कारों में न लगाकर जगत के कल्याण में ख़र्च करना चाहिए। यदि हम इस तरह माया- मोह के चक्कर में पड़ गए तो हम अधर्म और अनैतिकता के रास्ते पर अग्रसर हो जाएंँगे, फलस्वरुप हमारे अंदर के सारे सकारात्मक व अच्छे विचार नष्ट हो जाएँगे हम दुर्गुणों और दूर्विचारों से ग्रसित होकर पतन की तरफ़ अग्रसित हो जाएँगे।

हम साधु- संतों का कर्तव्य यजंझंझऐैझं जो झओो मोह माया के चक्कर में फंँसना नहीं है बल्कि दूसरों को इस मोह -माया से मुक्त कर उन्हें आत्मिक सुख प्राप्त करने का मार्ग दिखाना है।

आज देश तथा समाज इसीलिए विकृत होता जा रहा है क्योंकि आज के साधु- संत अपने कर्तव्यों को भूल गए हैं। वो ख़ुद ही मोह- माया के चक्कर में पड़े हुए हैं। जिन्हें दूसरों को राह दिखाना चाहिए वो ख़ुद रास्ते से भटक गए हैं। यही वज़ह है कि देश,समाज पतन की तरफ़ उन्मुख हो गया है।

साधना शाही, वाराणसी

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1 Comments

Mohammed urooj khan

23-Apr-2024 04:02 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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